मानव-प्रकृति
After a long time I tried to write a poem…a poem in Hindi….
जो जीवन के अंधकार से
उदित हुआ वो ही सूरज है
थक कर प्राण गिरे जो रज पर
उठ कर दौडे वो ही पूरब है ।।
जो चमत्कार लगता है तुमको
वो मानव की सृजनात्मकता है
जो उजियारा लगता है तुमको
वो करमो की साथॅकता है ।।
जो ममता की शीतलता है
चन्द्र कहाँ उसको छू पाया
जो पीडा सहती है नारी
धरातल को कब सहना आया ।।
यह ब्रहाण्ड रचा मानव ने
नर ने ही तो ब्रहम् बनाया
नारी ने वन और उपवन ये
सृिष्ट का हर मागॅ सजाया ।।
मैंने प्रयास कर इस कविता में
प्रकृति को मानव आकृति मे दरशाया
दूर नदी जब डूबा सूरज
तब मानव ने प्रकाश फैलाया ।।
जो जीवन के अंधकार से
उदित हुआ वो ही सूरज है
थक कर प्राण गिरे जो रज पर
उठ कर दौडे वो ही पूरब है ।।
जो चमत्कार लगता है तुमको
वो मानव की सृजनात्मकता है
जो उजियारा लगता है तुमको
वो करमो की साथॅकता है ।।
जो ममता की शीतलता है
चन्द्र कहाँ उसको छू पाया
जो पीडा सहती है नारी
धरातल को कब सहना आया ।।
यह ब्रहाण्ड रचा मानव ने
नर ने ही तो ब्रहम् बनाया
नारी ने वन और उपवन ये
सृिष्ट का हर मागॅ सजाया ।।
मैंने प्रयास कर इस कविता में
प्रकृति को मानव आकृति मे दरशाया
दूर नदी जब डूबा सूरज
तब मानव ने प्रकाश फैलाया ।।
Comments